Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [307 orreneurservasnareneurserareer तहां सुरसुरपति नितप्रति पूजत, परम भाव उर मांहि धरै। आह्वानन तिनकी हम करकै, पूजत, पुन्य भंडार भरै॥१॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश एक अंजनगिरि चार दधिमुखगिरि आठ रतिकर पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट्। सन्निधिकरणं / स्थापनं। अथाष्टकं - झङ्गला / कंचन शृंगार भराय, तीरथ जल लेकै। भवि पूजत प्रीति लगाय, जिनपद मन देकै॥ नंदीश्वर द्वीप महान, पश्चिम दिस सोहै। तेरह जिनमंदिर जान, सुर नर मन मोहै // 2 // ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश संबंधी अंजनगिर॥१॥ विजया वापी बीच दधिमुख॥२॥ विजया वापी मुखकोण प्रथम रतिकर // 3 // विजया वापीमुख कोण द्वितीय रतिकर॥४॥ वैजयंता वापी मुख बीच दधिमुख // 5 // वैजयंता वापी मुखकोण प्रथम रतिकर // 6 // वैजयंता वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर // 7 // जयन्ता वापी बीच दधिमुख // 8 // जयन्ता वापी मुखकोण प्रथम रतिकर // 9 // जयन्ता वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर॥१०॥ अपराजिता वापी बीच दधिमुख॥११॥अपराजिता वापी मुख कोण प्रथम रतिकर // 12 // अपराजिता वापी मुख कोण द्वितीय रतिकर गिरपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ जलं // केशर चंदन घस लाय, गन्ध सुगन्ध भरी। पूजत श्री जिनवर पाय, भव आताप हरी॥ नंदीश्वर. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥ उज्वल शशि किरण समान, अक्षत ले सुथरे। पूजत जिनचरण महान, पाप समूह हरे // नंदीश्वर. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं //

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