Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ 312] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ====== =========== अथ नन्दीश्वरद्वीपके उत्तरदिश संबंधी त्रयोदश सिद्धकूट जिनमंदिर विराजमान ताकी पूजा नं. 60 अथ स्थापना-अडिल्ल छन्द अष्टम द्वीप तनी उत्तर दिश जायजी। तेरह श्री जिनभवन जजत सुररायजी॥ हमें शक्तिसो नांहि करैं यहां थापना। पूजत निज धर प्रतिमा है हित आपना // 1 // ___ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके उत्तरदिश संबंधी एक अंजनगिरि चार दधिमुखगिरि आठ रतिकरगिर पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं, स्थापनं। ___ अथाष्टकं-जङ्गला छन्द। उज्वल जल निर्मल लाय, शीतल सुखकारी। पूजत श्री जिनवर पाय, कंचन भर झारी॥ नन्दीश्वर द्वीप महान, उत्तर दिश सोहै। तेरह जिनमंदिर जान, सुरगण मन मोहै // 2 // ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके उत्तर दिश संबंधी अञ्जनगिर॥१॥ रम्या वापी बीच दधिमुखगिर // 2 // रम्या वापी मुख कोन प्रथम रतिकर॥३॥ रम्यावापी मुख कोण द्वितीय रतिकर॥४॥ रमनी वापी बीच दधिमुख // 5 // रमनी वापी मुख कोण प्रथम रतिकर॥६॥ रमनी वापी मुख कोण द्वितीय रतिक र // 7 // सुप्रभा वापीबीच दधिमुख॥८॥ सुप्रभा वापी मुखकोण प्रथम रतिकर // 9 // सुप्रभा वापीमुखकोण द्वितीय रतिकर // 10 // सर्वतोभद्र वापी बीच

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