________________ 310] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान Sarararararararareranarararararanawr कोण जयंता वापीका, रतिकर द्वितीय दिपाय।सुरपति.॥ ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश जयंता वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ॥ बीच वापी अपराजिता, दधिमुख पर हरषाय।।सुरपति.॥ ____ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश अपराजिता वापी बीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ // अपराजिता सु कोणमें, रतिकर प्रथम बताय।।सुरपति.॥ ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश अपराजिता वापीमुख कोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 12 // अर्घ॥ कोन दुतिय अपराजिता, रतिकर लाल सु धाय।सुरपति.॥ ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश अपराजिता वापीमुख कोण द्वितीय रतिकर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ // अथ जयमाला-दोहा पश्चिम दिशा सुहावनी, अष्ट द्वीप सु विशाल। जिनमंदिर तेरह जहां, तिनकी सुन जयमाल // 24 // एकसौ त्रेसठ कोंड़ गिन लाख चौरासी जान। जोजन चौडा द्वीप है, इक इक दिश परमान॥२५॥ चाल-छन्द नंदीश्वर पश्चिम दिशा जगसार हो, तेरह गिर सु महान। गोल ढोल सम बन रहो जगसार हो, ऊपर तल सम जान॥ जान अंजनगिर मनोहर, द्वीप बीच बिराजही। लख लाख जोजन दिशा, चारों ओर वापी राजही॥ वापी प्रमान सु लाख जोजन, गोल रतनन सो जहां। जोजन हजार कही सु गहरी, अमल मीठे जल भरी॥