Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 322
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [313 = === = = == == == = ==== दधिमुख॥११॥ सर्वतोभद्र वापी मुखकोण प्रथम रतिकर // 12 // सर्वतोभद्र वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 13 // जलं॥ मलयागिर चन्दन सार केशर रंग भरी। जिनराज चरनपर वार, भव आताप हरी॥ नन्दीश्वर. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥ अक्षत शशि किरन समान पुंज सु दीजी जै। धर कनक थार भर आन, जिनपद पूजिजै॥ नन्दीश्वर. // 4 // ॐ ह्रीं. // अक्षतं॥ बहु फूल सुगंधित लाय, जिनमंदिर जइये। प्रभु चरनन भेट चढ़ाय, श्री जिन गुण गइये। नन्दीश्वर. // 5 // ॐ ह्रीं. // पुष्पं // फे नी गोझा सु बनाय, रसनाको प्यारे / जिन सनमुख देत चढाय, हर्ष हिये धारे॥ नन्दीश्वर. // 6 // ॐ ह्रीं. // नैवेद्य। ले दीप अमोलिक सार जगमग जोति जगी। ले कनक रकाबी धार, प्रभुसों प्रीत लगी॥ नन्दीश्वर. // 7 // ॐ ह्री. // दीपं // दस विधकी धूप बनाय, प्रभु आगै खेवो। कर्मादिक रोग नशाय, श्री जिनपद सेवो॥ नन्दीश्वर. // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं // फल परम मनोहर लाय, नैनन सुखकारी। जिन चरण सु पूजत जाय, पावो शिव प्यारी॥ नन्दीश्वर. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥

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