Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ 314] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान SwarsawrsarsawarSESSESSINR जल फल वसु दर्व मिलाय, अर्घ बनावत हैं। जिनराज सु पूजत जाय प्रभु गुण गावत हैं॥ नन्दीश्वर. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्घ॥ अथ प्रत्येकाघ-पद्धडी नंदीश्वर अष्टम द्वीप सार, उत्तर दिश अंजनगिर निहार। जिनमंदिरसुर पूजत सुजाय,हम जजत सुजिनपद शीश नाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश अंजनगिर पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ रम्या वापीबीच जगमगाय, दधिमुखगिर शिखर विर्षे सुहाय। जिनमंदिर सुरपूजत सुजाय, हम जजत सुजिनपद शीशनाय॥ ____ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश रम्या वापीबीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ रम्या वापी मुखकोन जान रतिकरगिर प्रथम शिखर महान। जिनमंदिरसुरपूजत सुजाय, हम जजत सुजिनपद शीश नाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश रम्या वापी मुखकोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ रम्या वापी विदिशा विशाल दूजै रतिकर गिर द्युति रिशाल। जिनमंदिर सुरपूजत सुजाय, हम जजत सुजिनपद शीशनाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश रम्या वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // रमणी वापी बीच है पवित्र,दधिमुखगिर शिखर बनो विचित्र। जिनमंदिर सुरपूजत सुजाय, हम जजत सुजिनपद शीशनाय॥ ____ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके उत्तर दिश रमणी वापीबीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ //

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