Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 318
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [309 nonnunnnnnnnnnnnnnnn विजया वापी बीचमें, दधिमुखगिर सुखदाय ।।सुरपति.॥ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश विजया वापी दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ // विजयावापी कोण लख, प्रथम सुरतिकर पाय॥सुरपति.॥ ____ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश विजया वापी मुखकोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // कोण विजयावापी तना, दोय रति करमन लाय।।सुरपति. ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश विजयावापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ वापी वैजयंता विषै, दधिमुख गिर बतलाय॥सुरपति.॥ ___ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश वैजयन्ता वापी बीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 5 // अर्घ // कोण वैजयंता जहां, रतिकर प्रथम लखाय।।सुरपति.॥ ____ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश वैजयंता वापी मुख कोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 6 // अर्घ॥ कौण वैजयंता दुतिय, रतिकर शीस सुहाय।।सुरपति.॥ ____ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश वैजयंता वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ // वापी जयंता बीच गिन, दधिमुखगिर चितलाय ।।सुरपति.॥ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश जयंता वापी बीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // प्रथम जयन्ता कोणमें रतिकर शिखर सुगाय॥सुरपति.॥ ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके पश्चिम दिश जयंता वापी मुखकोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ /

Loading...

Page Navigation
1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338