Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay

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Page 312
________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [303 ~~~~~~ ~~~~rarerarurvarar धूप दसविध निर्मल खेइये, परम पावन जिनपद सेयिये। दीप नंदीश्वर // 8 // ॐ ह्रीं. // धूपं // फल मनोहर सुन्दर धोयके, जजत जिनपद हर्षित होयकै। दीप नंदीश्वर॥९॥ ॐ ह्रीं. // फलं॥ जल सु फल वसुदर्व मिलायकै, अर्घ देत सुलाल बनायकै। दीप नंदीश्वर // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्घ // ___ अथ प्रत्येकार्घ-चौपाई छन्द नंदीश्वर दक्षिणदिश नाम, अञ्जन गिरपर श्री जिनधाम। सुरसुरपतिनित जजत सुजाय, हर निजधर पूजत जिनपाय॥ ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश अंजनगिरि पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // अरजा वापी बीच स नेह, दधिमुख गिरिपर श्री जिनगेह। सुरसुरपतिनित जजत सुजाय, हमनिजधर पूजत जिनपाय॥ ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश अरजा वापी बीच दधि मुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ // अरजा वापी कौन सु आदि, रतिकर पर जिनभवन अनादि। सुरसुरपतिनित जजत सुजाय, हमनिजधर पूजत जिनपाय॥ ____ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश अरजा वापी मुखकोण प्रथम रतिकर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ अरजा वापी दूजे कौन रतिकर गिरिपर श्री जिन मौन। सुर सुरपति नितजजत सुजाय, हम निजधर पूजत जिनपाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश अरजा वापी मुखकोण द्वीतीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ //

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