________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [301 जै समोसरन रचना समान, सब मङ्गल दर्व धरे प्रमान। जै जै श्रीजिनवर देव सोय, तुम सम नहीं दूजो देव कोय॥ घत्ता-दोहा-नन्दीश्वर पूरव दिशा, वरनी यह जयमाल। मन वच शीश नवायकै, लाल नवावत भाल॥ इति जयमाला। अथाशीर्वादः कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ __ इति आशीर्वादः इति श्री नन्दीश्वर द्वीपके पूरव दिश संबंधी तेरह जिनमंदिर सिद्धकूट बिराजमान तिनकी पूजा सम्पूर्णम्। अथ नन्दीश्वर द्वीपके दक्षिण दिश त्रयोदश पर्वतपर त्रयोदश सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 58 अथ स्थापना-कुसमलता छन्द है नन्दीश्वर द्वीप आठमों, ताकी दक्षिणदिश सुखदाय। इक अंजनगिर दधिमुख चार, रतिकर आठ कहे जिनराय॥ ताके शिखर श्री जिनमंदिर, स्वयं सिद्ध पूजत सुरराय। हमें शक्तिनाहीं पहुँचनकी, जिनपद जजत सु मंगल गाय॥ ___ॐ ह्रीं नन्दीश्वर द्वीपके दक्षिण दिश एक अंजनगिरि चार दधिमुख आठ रतिकर पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर