Book Title: Terah Dwip Puja Vidhan
Author(s): Mulchand Kisandas Kapadia
Publisher: Digambar Jain Pustakalay
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________________ 304] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान == === ==== ==== बिरजा वापी बीच निहार, दधिमुख गिरिपर जिनगृह सार। सुर सुरपति नित जजत सुजाय, हम निज धर पूजत जिनपाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश विरजा वापी बीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ विरजा पहिले कोण विचित्र रतिकरपर जिनभवन विचित्र। सुर सुरपति जजत सुजाय, हम निजधर पूजत जिनपाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश विरजा वापी मुखकोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ॥ विरजा दूजे कोण सु जान, रतिकर गिरपर श्री जिन थान। सुर सुरपति जजत सु जाय, हम निजधर पूजत जिनपाय॥ ____ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश विरजा वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ // वापी अशोक बीच जू बनो, दधिमुख पर मंदिर तिन तनो। सुर सुरपति नित जजत सुजाय, हम निजधर पूजत जिनपाय॥ ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश अशोक वापी बीच दधिमुख गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // पहिलो कोण अशोका दीश, जिनमंदिर रतिकर गिर शीश। सुर सुरपति नितजजत सुजाय, हम निजधर पूजत जिनपाय॥ ___ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश अशोका वापी मुखकोण प्रथम रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ // वापी अशोका कोण दूसरे, धाम जिनेश्वर रतिकर सिरे। सुर सुरपति नित जजत सुजाय, हम निजधर पूजत जिनपाय॥ ___ ॐ ह्रीं नंदीश्वर द्वीपके दक्षिणदिश अशोका वापी मुखकोण द्वितीय रतिकर गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ॥

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