________________ 254] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान तहां जिनभवन विशाल रतन द्युत सोहनो, वसुविध अर्घ चढ़ाय देत मन मोहनो॥१२॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी विजयवान नाम वक्षारगिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ विद्युन्माली मेरू तनी पश्चिम दिशा, आशीविष वक्षार शिखर सुन्दर लसा। तापर श्री जिन गेह रतन प्रतिमा तहाँ, नित प्रति अर्घ संजोय भविक पूजै जहां // 13 // ____ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी आसीविष नाम वक्षारगिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ विद्युन्मालीके पश्चिम दिश सार है, नाम सुखावह तास पड़ो वक्षार है। जिनमंदिर गिर शीष विराजत सार जू, पूजो भविक त्रिकाल लहै भवि पार जू॥१४॥ ___ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सुखावह नाम वक्षारगिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // दोहा-विद्युतगिर पश्चिम दिशा, चन्द्र नाम वक्षार। जिनमंदिर सुन्दर तहां, पूजो अर्घ संवार // 15 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी चन्द्र नाम वक्षारगिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ पश्चिम पंचम मेरुते, सूर्य नाम गिर सोय। श्री जिन भवन निहारकै, अर्घ जजू मद खोय॥१६॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सूर्य नाम वक्षारगिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ //