________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [287 ShareATSANSawaraaNaraa अथ पुष्करार्ध द्वीप मध्ये मंदिर विद्युन्माली मेरुके उत्तर दिश दोनों ऐरावत क्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 55 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द मंदिर विद्युन्माली गिरकी, उत्तर दिश ऐरावत दोय। ताके बीच परो गिर सुन्दर इक्ष्वाकार नाम है सोय॥ तापर श्री जिनभवन अनूपम पूजत सुरनर भविजन लोय। हम तिनकी आह्वाननविध कर, निज धरपूजत हर्षित होय॥ __ॐ ह्रीं पुष्करार्ध द्वीपमध्ये मंदिर विद्युन्माली मेरुके उत्तर दिश दोनों ऐरावत क्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं, स्थापनं। अथाष्टकं-चाल भाषा नन्दीश्वर पूजा द्यानतरायजी कृतकी। उज्वल जल शीतल छान, प्रासुक कर लीजे। जिनराज चरन ढिग जान, धार सु दीजिये। गिर इक्ष्वाकार महान, उत्तर दिश सोहै। तापर जिनराज सुजान पूजत मन मोहै // 2 // ॐ ह्रीं पुष्करार्ध द्वीपमध्ये उत्तर दिश दोनों ऐरावतक्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥ जलं॥ चन्दन केसर सु मिलाय, घसकर एक करो। पूजत श्री जिनवर पाय, भव आताप हरो॥ गिर इक्ष्वाकार. // 3 // ॐ ह्रीं. // चंदनं॥