________________ 286 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान पद्धडी छन्द जै पुष्करार्ध वर दीप जान, जै जुगम मेरु आगम प्रमान। जै ताकी दक्षिण दिश निहार, दोय भरतक्षेत्र सोहे सिंगार॥ जै दोऊ भरतके बीच सार, गिर इक्ष्वाकार परो निहार। लम्बाई जोजन दो हजार, चौरासी आठ शतक विचार॥ जै कनक वरन सुन्दर स्वरूप, राजत तापर जिनमंदिर अनूप। मनरचितखचितद्युतिजगमगाय,ध्वज पंकतछबिवरनी नजाय॥ जै वेदी पर कलशा उतंग, सिंहासन हेमवरन सुरंग। जै श्री जिनबिंब विराजमान, शतआठ अधिक भाषे पुरान॥ जै समोसरन रचना विचित्र, सब मंगल दर्व धरे पवित्र। सुर विद्याधर पूजैं त्रिकाल, धर भक्त हिये नावत सु भाल॥ प्रभु तुम गुण वरनन अगम सार, धर और ज्ञान पावै न पार। मनवचतन जिनपदशीषनाय,भविलालसदा बलर सुजाय॥ घत्ता-दोहा-यह जिनपूजनकी सुविध, जो वांचे मन लाय। महिमा ताके पुन्यकी रही तिहूँ जग छाय॥ इति जयमाल। अथाशीर्वादः कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढे अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः। इति श्री पुष्करार्ध द्वीपमध्ये विद्युन्माली मेरुके दक्षिण दिश दोनों भरत क्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।