________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [253 ==== == === ==== ==== प्रानी रत्न अमोलिक थालमैं धर पूजत प्रीत लगाय। प्रानी जगमग जोत सु होत है, ले श्रीजिनचरण चढ़ाय॥ प्रानी श्री. // प्रानी वि. // 7 // ॐ ह्रीं. // दीपं॥ प्रानी अगर कपूर मिलायकै, ले दसविध धूप बनाय। प्रानी श्री जिन आगै खेइये सब कर्म पुंज जर जाय॥ प्रानी श्री. // प्रानी वि. // 8 // ॐ ह्री. // धूपं॥ प्रानी लौंग छुहारे आदि दे फल ले उत्कृष्ट महान। प्रानी पूजत श्री जिनराजको, फल पावै मुक्ति निदान॥ प्रानी श्री. // प्रानी वि. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ प्रानी जल फल आठों दर्व ले भवि अर्घ बनावत लाय। प्रानी प्रभुपद पूजत भावसों, भवि लाल सु मंगल गाय॥ प्रानी श्री. // प्रानी वि. // 10 // ॐ ह्रीं. // अर्घ॥ अथ प्रत्येकार्घ-अडिल्ल छन्द विद्युन्माली मेरु दिशा पश्चिम जहां, शब्दवान वक्षार विराजत है तहां। ता गिर ऊपर धाम सरस सुखदाय जू, पूजो अर्घ त्रिकाल सु मन वच काय जू॥११॥ ____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी शब्दवान नाम वक्षारगिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्धं // विद्युन्माली मेरुतै पश्चिम दिशा मानिये, विजयवान वक्षार सरस ऊर आनिये।