________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [251 NarerarararareNTIRSANTOSHO घत्ता-दोहा धन्य धन्य जिनके चरन, जे पूजत सु विशाल। तिनपर बल बल जात है, भक्ति भाव धर लाल॥२७॥ इति जयमाल। अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढे अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः। इति श्री विद्युन्मालीमेरुके पूरव विदेह संबंधी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 48 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द विद्युन्माली मेरुके पंचमी, ताकी पश्चिम दिशा विचार। गिर वक्षार आठ तहां राजै, कंचन वरन सु नैन निहार // तिनपर श्री जिनमंदिर जानो, समोसरन रचना सुखकार। पूजा करत तहां सुर खेचर, हम पूजत निज धर हित धार॥ ___ॐ ह्रीं विद्यमाली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं। अत्र