________________ 266] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ==================== विद्युन्माली मेरु सरस सुन्दर लसैं / पश्चिम दिश शुभ देश महापद्मा वसै॥ रूपाचलके शिखर सु जिनमंदिर भलो। मन वच तन लौ लाय भविक पूजन चलो॥१४॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी महापद्मा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ पश्चिम दिश सुखकार मेरू पंचम तनी। पद्मकावती देश नाम उपमा धनी॥ श्री जिनभवन विशाल सरस सुन्दर जहां। आठों दर्व संजोय भविक पूजो तहां // 15 // ___ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी पद्मकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ दोहा-पश्चिम विद्युन्मेरुके, देश सुसंखा सार। जिनमंदिर वैताढ़के, पूजों अर्घ संवार // 16 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सुसंखा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ विद्युन्माली मेरुतें पश्चिम नलिना देश। विजयारधपर जिनभवन, पूजो अर्घ विशेष // 17 // ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी नलिनी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ॥ विद्युन्गिर पश्चिम दिशा कुमदा देश विशाल। रुपाचलपर जिन सु गृह, अर्घ जजों भर थाल॥१८॥ ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी कुमदा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ //