________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [277 NNNNNNNNNNNNNNNNNNNN कर जन्म महोत्सव दे सुमात, निज थान गए हषित सुगात। तिस क्षेत्र बीच वैताढ़ सार, द्युति श्वेत वरन मनहर हार॥ तापर नवकूट कहे उसंग, बिच सिद्धकूट कंचन सुरंग। तहां श्रीजिनमंदिर जगमगाय, सब समोसरण रचना लखाय॥ जै श्री जिनबिंब विराजमान, सत आठ अधिक प्रतिमा प्रमान। सुर खग इंद्रादिक जजत पाय,भविलाल सदा बलर सुजाय॥ घत्ता-दोहा विजयारध पर जिनभवन पूजा बनी विशाल। मन वचन तन लौ लायक, लाल नवावत भाल॥२१॥ इति जयमाला। अथाशीर्वाद - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढ़े अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति इत्याशीर्वादः इति श्री विद्युन्माली मेरुके उत्तरदिश ऐरावत क्षेत्र संबंधी रुपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।