________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [225 घत्ता-दोहा। विजयारधपर जिनभवन ताकी यह जयमाल। भविजन कण्ठ सुहावनी, लाल नवावत भाल॥२१॥ अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक तिन भवन अकीर्तम ताको पाठ पढै मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः। इति श्री मंदिरमेरुके उत्तर ऐरावत सम्बन्धी क्षेत्र सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ मंदिर मेरुके दक्षिण उत्तर षट्कुलाचल पर्वतपर जिनमंदिर पूजा नं. 43 अथ स्थापना - कुसुमलता छन्द मंदिरगिरकी दक्षिण उत्तर षट्कुल गिर सोहै सु रिशाल। तिनपर श्री जिनभवन अनूपम, कनक रतनमई परम विशाल॥ सुर सुरपति विद्याधर सब मिल, पूजत जिनपद तीनों काल। हम तिनकी आह्वानन विधकर निजधर पूज नवावै भाल॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके दक्षिण उत्तर कुलाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठ: स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणं स्थापनं।