________________ 242] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ធផលដែលផលធននននននន घत्ता-दोहा विद्युन्माली मेरूके, कहें चार गजदंत। तिनकी यह पूजा भई वांचत भविजन सन्त॥२३॥ इति जयमाल। अथाशीर्वादः कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री विद्युन्माली मेरुके विदिशा मध्ये चार गजदन्त पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ विद्यन्माली मेरुके उत्तर दिश ईशान कौन सम्बन्धी जंबूवृक्षपर अर दक्षिणदिश नैऋत्यकौन संबंधी शाल्मली वृक्षपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 46 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द विद्युन्माली मेरु पांचमो, ताकी उत्तर दिश ईशान। अर दक्षिण नैऋत्य कौन ढिग, जंबू शाल्मली तरु जान // तिनपर श्री जिनभवन अकीर्तम, पूजत सुर विद्याधर आन। हम तिनकी आह्वानन करके, जिनपद पूजत आनंद मान॥ ____ॐ ह्रीं विद्युन्माली मेरुके उत्तर ईशानकौन सम्बन्धी जम्बूवृक्ष अर दक्षिण नैऋत्य कौन शाल्मली वृक्षकी पूर्व शाखापर सिद्धकूट