________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [ 95 = === = == === == विजय सु पश्चिम दिश गिनौ, नाग नाम वक्षार। ताके ऊपर जिनभवन, पूजों अर्घ संवार // 26 // ॐ ह्रीं विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी नाग नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ // देव नाम वक्षार है, विजयके पश्चिम आन। तापर जिनवर भवन लख, अर्घ जजों तज मान॥२७॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी देव नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // विजयमेरु पश्चिम दिशा, गिर वक्षार विशाल। तिनपर जिनमंदिर बने तिनकी सुन जयमाल // 28 // पद्धडी छन्द जै द्वीप धातुकी है अति उदार, ताकी पूरव गिर विजय सार। तिस गिरकी पश्चिम दिश महान, जै षोडश देश विदेह थान॥ तहां तीर्थंकर राजै सदीव, बल चक्री हर प्रतिहर सु जीव। जै पुन्य पुरुष भावें प्रवीन, जिह क्षेत्र सदा उपजै नवीन // तहां रिषभानन जिन विद्यमान, दूजै प्रभु वीर्य अनंत जान। जै जिनवानी धुन खिरै सार, भविजीव सुनै आनंद अपार॥ केइ वानी सुन वैराग होय, मुनि भार वहै भव त सोय। केइ श्रावकके व्रत धरै धीर, केइ सम्यग्दर्शन लहैं वीर॥ सब कर्म भूम रचना सुहाय, जहां चौथा काल सदा रहाय। तिस क्षेत्र बीच बैताड़ आठ, गिरपर महासुन्दर सुठाठ॥