________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [113 NawarararNNNNNNNNNNNNNN ____घत्ता-दोहा दर्श देख जिनराजको, सम्यक् लहत सु जीव। यह पूजा वैताड की वांचों भव्य सदीव॥ इति जयमाला। अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री विजयमेरुकी दक्षिण दिश भरतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ विजयमेरुके उत्तर दिश ऐरावतक्षेत्र संबंधी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 20 अथ स्थापना - (मदअवलिप्तकपोल छन्द) विजयमेरुकी उत्तरदिशमें, ऐरावत शुभ क्षेत्र महान। जहां होत चौबीस तीर्थंकर, नितप्रति नमें सचीपति आन॥ तहां पडो वैताड मनोहर, तापर सिद्धकूट जिनथान। तिनकी आह्वानन विधि करके, अपने घर पूजत सुख मान॥ ___ॐ ह्रीं विजयमेरुके उत्तर दिश ऐरावतक्षेत्र संबंधी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतरसंवौषट् आह्वाननं ।अत्र तिष्ठतिष्ठ ठः ठःस्थापनं, अत्रममसन्निहितोभवर वषट् सन्निधिकरणम्, स्थापनं।