________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [127 ANSrawaraNEFarararakarsanaries अचल सु पश्चिम वीर, नन्दनवन अति सोहनो। जिनमंदिर कर जोर, पूजो वसु विध दर्वसों॥१७॥ ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके नन्दन वन सम्बन्धी पश्चिम दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्धं // अचलमेरु सुखकार, उत्तर नन्दन वन कहो। जिनमंदिर सु निहार, अर्घ जजो वसु दर्व ले॥१८॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके उत्तर दिश नन्दनवन सम्बन्धी सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // चौपाई अचलमेरु सुन्दर सु रिशाल, ताकी पूरव दिश सु विशाल। वन सौमनस सु अति घनधोर, जिनमंदिर पूजो कर जोर॥ ____ॐ ह्रीं अचलमेरुके पूरव दिश सौमनस वन सम्बन्धी सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ // अचलमेरुके दक्षिण दिशा, वन सौमनस सघन बहु लसा। तहां जिनमंदिर परम रिशाल, अर्घ चढाय नमत तिहूँकाल॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके दक्षिण दिश सौमनस वन सम्बन्धी सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ // अचलमेरु पश्चिम दिश जान, वन सौमनस वसै सुखखान। श्री जिनमंदिर बने अनाद, अर्घ जजूं तजके परमाद॥ ____ ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम दिश सौमनस वन सम्बन्धी सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ॥ अचलमेरुके उत्तर दिश जहां, वन सौमनस विराजै तहां। श्री जिनमंदिर सुन्दर जोय, अर्घ चढ़ाय नमूं पद खोय॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके उत्तर दिश सौमनस वन सम्बन्धी सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ॥