________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [195 जै हमपर करुणा कर दयाल, चहू गतके दुखते वेग टाल। यह अरज हमारी सुनो देव, तुम चरणनकी हम करै सेव॥ जग जाल महा विकरालरूप, याते न्यारो कर जगत भूप। तुम तारण समरथहो सुजान, कोउ देव न दूजो और आन॥ हम शीश नवावत बार बार, करूणा कीजे उर धार धार। जै तातें हमको तार तार, जै कीजे जगते पार पार // घत्ता-दोहा श्री मंदिरगिरि मेरु ढिग, जुगम वृक्ष सु विशाल। सुर खग मिल पूजत सदा, लाल नवावत भाल॥२१॥ इति जयमाल। मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महीमा, वर्णन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु सम्पति, बाढे अधिक सरस सुखदाय। यह भव जसपर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ ___ इत्याशीर्वादः इति मंदिरमेरु सम्बन्धी जम्बू शाल्मली वृक्षपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम् / <> <> <>