________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [215 PNOTTrerakareersarararararaaNP दोहा-मंदिर गिरि पश्चिम दिशा, देश सुसंखा सार। रुपाचलपर जिन भवन, जजै अर्घ संवार // 15 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी सुसंखा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ / नलिना देश सुहावनो, मंदिर पश्चिम द्वार। विजयारधपर जिन भवन, अर्घ जजों भर थार॥१६॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी नलिनी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्ध / / गिरि मंदिर पश्चिम गिनो, कुमदा देश विचित्र।। जिन मंदिर वैताड़ पर, पूजो अर्घ पवित्र // 17 // ___ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी कुमदा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥ / सरिता देश वसे जहां मंदिर पश्चिम जान। रुपाचल जिन भवन लख, पूजो अर्घ महान // 18 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी सरिता देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // सुन्दरी छन्द मेरु मंदिरकी पश्चिम दिशा, देश वप्रा है सुन्दर लशा। जिनभवन वैताड़ महान जू, अर्घ सों पूजत धर ध्यान जू॥ ____ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी वप्रा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ // देश नाम सुवप्रा अति बनो, मेरु मंदिर ते पश्चिम गिनो। रूपागिरि जिनभवन विशाल जू,अर्घ ले पूजत भवि लालजू॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी सुवप्रा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ॥