________________ 216] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान vururururururururururururururururururu गिर सुमंदिर दिश पश्चिम कहो, महा वप्रा देश सुलहलहो। गिरिशिखर विजयारधके भलै,जिनभवन पूजो भवि अर्घ ले॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी महावप्रा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ // वप्रकावती देश सु जानिये, मेरु मंदिर पश्चिम मानिये। जिन भवन रूपाचल है जहां, अर्घ ले पूजत भविजन तहां॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी वप्रकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 12 // अर्घ // चौपाई गंधा देश बसै घनघोर, मंदिर गिरिकी पश्चिम ओर। विजयारधपर जिनवर भौन, अर्घ जजो करके चिंतौन॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी गंधा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ॥ देश सुगन्धा नाम महान, गिरि मंदिरके पश्चिम जान। जिनमंदिरमें अर्घ चढ़ाय, विजयारध पर पूजो जाय॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी सुगंधा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ // मेरु सु मंदिर पश्चिम बसै, देश गंधला भूपर लसै। तहां रूपाचल पर जिनथान, वसुविध पूजो तज अभिमान॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी गंधला देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ // गंधमालनी देशवरन्य, मंदिर गिरते पश्चिम धन्य। गिर वैताड़ शिखर पर जाय, जिनमंदिर पूजो हरषाय॥ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी गंधमालनी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 16 // अर्घ /