________________ 218] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान AarararararararararararSararararararera घत्ता-दोहा मंदिर गिर पश्चिम दिशा, गिर वैताड़ विशाल। पूजा सरस सुहावनी, उर धर वांचत लाल // 37 // इति जयमाल। अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिनभवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी षोड़श रुपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ मंदिरमेरुके दक्षिण दिश भरतक्षेत्र संबंधी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 41 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द श्री मंदिरगिरकी दक्षिणदिशमें, भरतक्षेत्र सोहै उर आन। छहों कालकी फिरन जहां है, तहां पडो वैताड़ महान॥ ताके शिखर श्री जिनमंदिर, सुर विद्याधर पूजत आन। हम तिनकी आह्वानन करके, जजत जिनेश्वर मंगल ठान॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके दक्षिणदिश भरतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतरसंवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठःस्थापनं, अत्रमम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणम्स्थापनं।