________________ 214] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान wrararararararwariharanwrwasnareranars श्रीफल लौंग छुहारे पिस्ता, दाख बदामसु लावत हैं। श्री जिनचरण चढ़ावत भविजन, मनवांछित फल पावत हैं। मंदिर. // 9 // ॐ ह्रीं. // फलं॥ वसु विध दर्व मिलाय मनोहर, अर्घ बनावत भर थारी। जजत जिनेश्वरके पद पंकज लाल चरणपर बलिहारी॥ मंदिर. // 10 // ॐ ह्रीं. ॥अर्घ॥ अथ प्रत्येकार्घ - चाल छन्द मंदिर पश्चिम दिश कहिये, तहां पद्मा देश जु लहिये। रूपाचल पर जिन गेहा, भवि अर्घ जजों धर नेहा // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी पद्मा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ जहां देश सुपद्मा होई, पश्चिम दिश मंदिर सोई। वैताड़ सिखर जिन धामा, ले पूजो भवि तज कामा॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी सुपद्मा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ // मंदिर गिर पश्चिम जानो, महापद्मा देश प्रमानो। रुपाचल जिनगृह सोहै, पूजत सुरनर मन मोहै। ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी महापद्मा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ शुभ पद्मकावती देशा, मंदिरते पश्चिम वेशा। तहां गिर वैताड सुहाई, जिन मंदिर पूजो भाई॥ ____ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी पद्मकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ //