________________ 204] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान INNNNNNNNNNNNNrararare मंदिरते पश्चिम लीजे गिरनाम जू नाग कही जे। जिन मंदिर तापर सोहै, जिन पूजत सुर नर मोहै। __ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिमविदेह सम्बन्धी नाग नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 7 // अर्घ // गिरदेव नाम सुखकारी, मंदिर पश्चिम दिश भारी। जिन भवन महासुखदाई, भवि अर्घ जजो हरषाई॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिमविदेह सम्बन्धी देव नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // अथ जयमाला - दोहा मंदिर गिरि पश्चिम दिशा, वसु वक्षार विशाल। तिनपर सोहै जिनभवन, तिनकी सुन जयमाल // 20 // पद्धडी छन्द जै जै श्री मंदिरमेरु सार, जै ताकी पश्चिम दिश विचार। तहां है विदेह सुन्दर सु जान, मानों उतरो सुरलोक आन॥ जहां चौथो काल रहै सदीव, जिनधर्म सदा धारै सु जीव। जहां हों तीर्थंकर विद्यमान, जै ईश्वर नेमिश्वर महान॥ जहां श्री मुनिराज करै विहार हलधर प्रतिहर चक्री मुरार। सब पुन्य पुरुष उपजैं असेष, श्रावक सम्यग्दृष्टि विशेष // तहां चारों विधके देत दान, भवि नित्य निपुन भाषं पुरान। जै जै जहां सुन्दर हैं विशाल, वक्षार सु वसु सोहै रिशाल॥ जै तिन गिरपर हैं कूट सार, जैतापर जिनमंदिर निहार। सब समोसरण रचना सु धार, बन रहो परम आनंदकार॥