________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [209 Karnaraswareranarrarerrerary रुपाचल जिन गेह, गिर मंदिर पूरव दिशा। अर्घ जजो धर देह, देश मंगलावर्तमें // 16 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी मंगलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 6 // अर्घ // देश पुष्कला जान, मंदिर गिरते पूर्व दिश। अर्घ जजो धर ध्यान, जिनमंदिर विजयार्धके॥१७॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी पुष्कला देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ // मंदिर पूरव देख, पुष्कलावती देश है। पूजो अर्घ विशेष, रुपाचल जिन भवनमें // 18 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी पुष्कलावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // चाल छन्द मंदिर पूरव दिश जानो, तहां वक्षा देश प्रमानो। विजयारधपर जिन गेहा, भवि अर्घ जजों धर नेहां॥१९॥ ____ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी वक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ // जहां देश सुवक्षा देखो, मंदिरते पूरव लेखो। रुपाचलपर जिन थाना, पूजो भवि अर्घ महाना॥२०॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी सुवक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ॥ पूरव दिश मंदिर सोई, महावक्षा देख जु होई। बैताड़ शिखर जिन धामा, भवि अर्घ जजो तज कामा। ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी महावक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ॥