________________ 208] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान nrururururururunununununununCCINAS अथ प्रत्येकार्घ - दोहा कक्षा देश विशाल है, मंदिर पूरव और। रूपागिरपर जिनभवन, अर्घ जजों कर जोर // 11 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी कक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // मंदिरगिरि पूरव दिशा, देश सु कक्षा सार। विजयारधपर जिनभवन, अर्घ जजों भर थार // 12 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी सुकक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ देश महाकक्षा बनो, पूरव मंदिर द्वार / जिनमंदिर वैताड़ पर अर्घ जजों भर थार // 13 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी महाकक्षा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // पूरव मंदिर मेरु के , कक्षकावती देश। रूपाचल जिनभवन लख, पूजो अर्घ विशेष // 14 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी कक्षकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // सोरठा। देश आवर्ता सार, गिर मंदिर पूरव दिशा। पूजो अर्घ संवार, जिन मंदिर वैताड़के // 15 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पूर्व विदेह सम्बन्धी आवर्ता देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्धं //