________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [203 ============ ======= अथ प्रत्येकार्घ - छन्द चाल मंदिरगिर पश्चिम द्वार, तहां शब्दवान वक्षारा। तिस ऊपर श्री जिन गेहा, नित अर्घ जजों धर नेहा॥ ____ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिमविदेह सम्बन्धी शब्दवान नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ जहां विजयवान गिर कहिये, मंदिर” पश्चिम लहिये। तहां श्री जिन भवन सुहाई, नित अर्घ जजो रे भाई॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिमविदेह सम्बन्धी विजयवान नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥२॥ अर्घ॥ गिर मंदिर पश्चिम जानो, आसीविष नाम प्रमानो। तापर जिनमंदिर ध्यायो, ले वसु विध अर्घ चढ़ावो॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिमविदेह सम्बन्धी आसीविष नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ॥ गिर नाम सुखाः वह देखो, मंदिर ते पश्चिम लेखो। जिन मंदिर तापर हुजो, ले अर्घ जिनेश्वर पूजो॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिमविदेह सम्बन्धी सुखावह नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ॥ मंदिरके पश्चिम द्वारा, गिरि चन्द्र नाम वक्षारा। तहां पर जिन भवन लखाई, पूजो भवि अर्घ चढ़ाई॥ ____ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पश्चिमविदेह सम्बन्धी चन्द्र नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ॥ है सूर्य नाम गिरि छट्ठा मंदिरते पश्चिम दिट्ठा। तापर जिनभवन विशाला, पूजों जिन अर्घ रिशाला॥ ॐ ह्री मंदिरमेरुके पश्चिमविदेह सम्बन्धी सूर्य नाम वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 6 // अर्घ //