________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [205 जैतहां जिनबिंब विराजमान, प्रतिमा शतआठ अधिक प्रमान। जै सुर सुरपति पूजा कराहि, वसु दर्व लिए करके सु मांहि॥ जै विद्याधर सब भूप आय, जिनराज चरन पूजत बनाय। जै जिनगुण गावैं भक्त लीन, जिनचरण कमल से प्रवीन / जै जग जैवंते होय देव, भविजीव सदा तुम करै सेव। यह अरज हमारी सुनो सार, संसार-समुद्रतै करो पार // घत्ता-दोहा पश्चिम दिश वक्षारगिरि, पूजा बनी विशाल। तहां जिनभवन निहारकै, लाल नवावत भाल॥२९॥ अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु सम्पति, बाढ़े अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति इत्याशीर्वादः इति श्री मंदिरमेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।