________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [185 rurururunururununununununununununununun मेरु मंदिर दक्षिण दिश भली वन सुनंदन लख पूजैं रली। जिनभवन जिनबिम्ब विशाल जू, अर्घ ले पूजत भर थाल जू॥ _____ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके नंदन वन सम्बन्धी दक्षिण दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 6 // अर्घ // दिश सु पश्चिम मंदिरकी कही, वन सुनंदन बहु शोभा लही। जिनभवन तहां देखो चावसों, अर्घ ले भवि पूजो भावसों॥ ____ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके नन्दनवन सम्बन्धी पश्चिम दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥७॥ अर्घ॥ मेरु मंदिर दिश उत्तर जहां, वन सुनंदन सघन लसै तहां। मणिमई जिनमंदिर सोहने अर्घ ले पूजत मन मोहने // ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके नन्दन वन सम्बन्धी उत्तर दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥८॥ अर्घ // सोरठा मेरु सु मंदिर जान, पूरव वन सौमनसमें। स्वयंसिद्ध जिन थान, पूजो अर्घ चढायकै॥१९॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके सोमनस वन सम्बन्धी पूर्व दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥९॥ अर्घ // मंदिर दक्षिण द्वार मन सौमनस विषै कहो। जिन मंदिर सुखकार, अर्घ जजो वसु दर्व ले॥२०॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके सोमनस वन सम्बन्धी दक्षिण दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१०॥ अर्घ / पश्चिम मंदिरमेरु वन सौमनस सुहावनो। जिनमंदिर छबि हेर, अष्ट दरव पूजा करो॥२१॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके सोमनस वन सम्बन्धी पश्चिम दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ॥