________________ 186] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ធនធានធនធានធនធានធនធ वन सौमनस रिशाल, गिरि मंदिर उत्तर दिशा। जिनमंदिर सुविशाल अर्घ जजो अति भावसों॥२२॥ ____ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके नंदन वन सम्बन्धी उत्तर दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ॥ सोरठा-मंदिर गिरि पूरव दिशा पांडुक वन सुखकार। तहां जिनभवन निहारके, अर्घ जजों भर थार॥ ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पाईंकवन सम्बन्धी पूर्व दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ॥ दक्षिण मंदिरमेरुके पांडुक वन जिन गेह। वसु विध अरघ संयोजके, जिन पूजो धर नेह॥२४॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पांडुक वन सम्बन्धी दक्षिण दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ // पश्चिम मंदिरमेरुके, पांडुक वन जिन थान। मन वच तन लव लायके, अर्घ जजों धर ध्यान // 25 // ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पांडुक वन सम्बन्धी पश्चिम दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ // मंदिर गिर उत्तर दिशा, पांडुक वन सुखदाय। श्री जिनभवन विलोकके, अर्घ जजों चित लाय॥२६॥ ___ॐ ह्रीं मंदिरमेरुके पांडुक वन सम्बन्धी उत्तर दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ // अथ जयमाला - दोहा मंदिर गिर चारों दिशा, चारों वन सु विशाल। षोड़स मंदिर पूजके, अब वरनूं जयमाल // 27 //