________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [181 nurururururururururururunnirypruriere जै द्रुम द्रुम द्रुम बाजत मृदंग, इन्द्रानी इन्द्र नचैं जु संग। जै थेई थेई थेई धुनि रही पूर, द्वै रहो सु झुरमट जिन हजूर।। निरजर निरजरनी करत गान, खेचर खेचरनी तजत मान। हम नमत धरासो शीश नाय, जै जै जै त्रिभुवनके राय॥ घत्ता-दोहा इक्ष्वाकार तनी रची, पूजा सरस रिशाल। जो भवि वांचैं भावसों, तिनके भाग विशाल॥२१॥ इति जयमाल। अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, जाडै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः इति श्री धातुकी द्वीप मध्ये विजय अचलमेरुके उत्तर दिश दोनों ऐरावत क्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट ___ जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। इति श्री धातुकी द्वीप मध्ये विजयमेरू सम्बन्धी अठत्तर और अचलमेरु सम्बन्धी अस्सी सब मिल एकसौ अठावन जिनमंदिर शाश्वते विराजमान तिनको पूजापाठ सम्पूर्णम्। # # #