________________ 126] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान =================== अथ प्रत्येकार्घ - दोहा अचलमेरु पूरव दिशा, भद्रशाल वन जान। तहां जिनमंदिर सोहने, पूजो उर धर ध्यान॥११।' ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी पूर्वदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ॥ अचलमेरुके दक्षिण दिशा, भद्रशाल वन सोय। ॐ ह्रीं अचलमेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी दक्षिणदिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो // 2 // अर्घ॥ अचलमेरु ते जानिये, पश्चिम दिश सुखकार। भद्रशाल वन जिनभवन, पूजत हरष अपार // 13 // ॐ ह्रीं अचलमेरुके पश्चिम दिश भद्रशाल वन सम्बन्धी सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥३॥ अर्घ // अचलमेरुके उत्तर दिशा, भद्रशाल वन सार। श्री जिनभवन सु पूजिये, जिनवर बिंब निहार // 14 // ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके उत्तर दिश भद्रशाल वन सम्बन्धी सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥४॥ अर्घ // सोरठा-- अचलमेरुते जान, पूरव नन्दन वन विौं / जिनमंदिर धर ध्यान, पूजों अर्घ चढ़ायके॥१५॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके नन्दन वन सम्बन्धी पूर्व दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥५॥ अर्घ // अचलमेरु है नाम, दक्षिण दिशा सु जानिये। नन्दन वन जिन धाम, मैं पूजू मन लायकै // 16 // ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके नन्दन वन सम्बन्धी दक्षिण दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥६॥ अर्घ //