________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [147 NNNNNNNNNNNNNNNNNNNN केई सम्यग्दर्शन लहैं जीव, यह अतिशय श्रीजिनवर सदीव। जहांकर्मभूमि है तिहूँकाल,शिवमारगकी जहांचलैचाल आठ ऐसे शुभ क्षेत्र बनो रिशाल, तहां गिरि वक्षार पड़े विशाल। जै गिरि उपर जिनभवन ठाठ,जिनबिंब लसैं शत अधिक आठ सब समोसरण रचना समान, वसु मंगल दर्व विराजमान। सत इंद्र चरणनकी कंरत सेव, जै नंद वृद्धि भासत सु देव॥ जै नृत्य करत संगीत सार, बाजे बाजत अनहद अपार / निरजर निरजरनी करत मान, भूचर भूचरनी करत ध्यान॥ खेचर खेचरनी सबै आय, मुख पाठ पढ़त अति मुदित काय। हम पूजत जिनमंदिर सुआय, निज चरणकमलपर सीसनाय॥ जै जै जै जिनवर परम देव, तुम चरणनकी हम करत सेव। यह अरज हमारी सुनो सार, संसार जलधतें करो पार॥ घत्ता-दोहा अचलमेरु पश्चिम दिशा, गिरि वक्षार विशाल। तिनपर जिनमंदिर निरख, लाल नवावत भाल॥२९॥ अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणनको कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू सम्पति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री अचलमेरुके पश्चिम विदेह संबंधी आठ वक्षार गिरिपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।