________________ 174] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान PareersNrwareNavaratra घत्ता-दोहा-षट कुलगिर पूजा परम, बनी सु बहुत विशाल। वांचत सुख उपजै घनो, लाल नवावत भाल॥ इति जयमाल। अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति अथाशीर्वादः ___ इति श्री अचलमेरुके दक्षिण उत्तरदिश पटकुलाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। इति श्री धातुकी द्वीप मध्ये पश्चिम दिश अचलमेरु सम्बन्धी अठत्तर जिनमंदिर शाश्वते विराजमान तिनकी पूजा सम्पूर्णम्। अथ धातुकी द्वीपमध्ये विजय अचल मेरुके दक्षिण दिश दोनों भरतक्षेत्र बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 32 दीप धातुकी युगम मेरुके, दक्षिण दिश है इक्ष्वाकार। दोउ भरतके बीच विराजत, दक्षिण उत्तर दंडाकार / / तिस गिरिशिखर एक जिनमंदिर, स्वयं सिद्धरचना अधिकार। तिनको आह्वानन विध करकै, जजत जिनेश्वर अष्ट प्रकार॥ ॐ ह्रीं धातुकी द्वीप मध्ये विजय अचलमेरुके दक्षिण दिश इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट्