________________ 172] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान Jurururururunurdurdururururirurver, भद्रशाल वन अचलमेरुके, सीतोदा दोनों तट जान। कुंड मनोहर पांच पांच हैं, तिस तट गिर दस दस परमान। तिस कंचन गिरिपर जिन प्रतिमा, एकर सोहै जिन थान। सब मिल एकशतक नित प्रति हम,अर्घजजत उरमें धरध्यान। ___ॐ ह्रीं अचलमेरुके भद्रशाल वन सम्बन्धी सीतोदा नदीके दोनों तट पांच पांच कुंड तिस एक एक कुण्ड तट दस दस कंचनगिरि तिन कंचनगिरि पर एक एक जिनप्रतिमा अकीर्तम गन्धकुटी सहित विराजमान तिन एकसौ प्रतिमाजीको॥८॥ अर्ध / / अचलमेरु वन चार मनोहर, चारों दिश षोड्स जिन थान। षोडस गिरि वक्षार सिखरपर, चौतिस विजयारध गिरिजान॥ षट् कुलगिरिके कुरु द्रुमके दुई, हस्थी दंत चार परमान। आठ अधिक सत्तर जिनमंदिर, अर्घ जजो उरमें धर ध्यान॥ ____ॐ ह्रीं अचलमेरु सम्बन्धी चारों दिशा अठत्तर जिनमंदिर सिद्धकूट तिनको॥९॥ अर्धं // अचलमेरुके पूरव लवनोदधि, पश्चिम कालोदधि मरजाद। दक्षिण उत्तर इश्वाकारे, बीच क्षेत्र बहु कहे आबाद // सिद्ध भूमि तहां कही अनंती, अरु जिनमंदिर साद अनादि। मन वच तन हम सीस नायकै, अरघ जजत तजकै परमाद। ॐ ह्रीं अचलमेरु सम्बन्धी दिशा विदिशा मध्ये लवणसमुद्र आदि कालोदधि पर्यन्त जहां जहां सिद्धभूमि होय तहां अथवा कीर्तम अकीर्तम जिनमंदिर होय तहां तहां // 10 // अर्धं // अथ जयमाल .. दोहा अचलमेरु कुलगिर सिखर, जिनमंदिर सु विशाल। जिनपद पूज रचायकै, अब वरनूं जयमाल /