________________ 17 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान sururururunupurpururuRUPURIFICURUPUrya अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिनभवन अकीर्तम, ताको पाठ पढै मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री धातुकी द्वीप मध्ये अचलमेरुके दक्षिण दिश दोनों भरतक्षेत्र बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ धातुकी द्वीप मध्ये विजय अचलमेरुके उत्तरदिश दोनों ऐरावत क्षेत्रके बीच इक्ष्वाकार पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 33 अथ स्थापना-कुसुमलता छन्द विजय अचलकी उत्तरदिश, गिन द्वीप धातुकी मांहि सुजान। ऐरावत जुग क्षेत्र मनोहर तिस बीच इक्ष्वाकार महान॥ सिद्धकूट तापर जिनमंदिर, स्वयं सिद्ध रचना उर आन। तिनकी आह्वानन विध करकै, जजत जिनेश्वर मंगल ठान॥ ___ॐ ह्रीं धातुकी द्वीप मध्ये विजय अचलमेरुके उत्तर ऐरावत क्षेत्र दोनों के बीच इक्ष्वाकार पर्वत पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं अत्र तिष्ठ२ ठः ठः स्थापनं, अत्र मम सन्निहितो भव२ वषट् सन्निधिकरणम्, स्थापनं /