________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [167 Pururururururururururururururururununun गिर शिखर श्रीजिनभवन सार, सब समोसरण रचना निहार। वेदीपर सिंहासन सुहाय, तापर सु कमल द्युति जगमगाय॥ तिस ऊपर श्रीजिनराज भूप,सत आठ अधिक प्रतिमा अनूप। सब मंगल दर्व रचे बनाय, छबि प्रातिहार्य वरनी न जाय॥ सुर विद्याधर पूजैं त्रिकाल, गुण गान करत अद्भुत विशाल। जै नृत्य करत संगीत सार, बाजे बाजै अनहद अपार // जैसो कौतूहल रहो छाय, तैंसो मोपै वरनो न जाय। जिनराज चरनपर सीसनाय, भवि लाल सदा बलर सुजाय॥ धत्ता-दोहा उत्तर अचल सुमेरुकी, गिर वैताड़ विशाल। श्री जिनवर पद पूजकै, लाल भनी जयमाल॥२४॥ अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मनलाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरू संपति, बाढै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस पर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः। इति श्री अचलमेरुके उत्तरदिश ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। 222