________________ 166] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान careerNararararararararareranvrore गिर शिखर श्री जिनभवन सुन्दर, सिद्धकूट सुहावनो। वसु दर्व ले हम जजत जिनपद, अर्घ अति मन सुहावनो॥ ॐ ह्रीं अचलमेरुके उत्तरदिश ऐरावतक्षेत्र सम्बन्धी रूपाचलपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१॥ अर्घ // अचलमेरु उत्तर दिशा, ऐरावत सुविशाल। रूपाचल पर जिनभवन, सुन तिनकी जयमाल // 12 // __ पद्धडी छन्द जै द्वीप धातुकी है प्रसिद्ध, पश्चिम गिरअचल सुस्वयं सिद्ध। ताकी उत्तर दिश क्षेत्र थान, ऐरावत नाम पड़ो महान॥ षट्काल फिरें आगम प्रमान, अंबुध दश कोडाकोडी जान। है जुगला धर्म सुकाल तीन, तहां भोगभूम जानो प्रवीन। दस कल्पसरोवर लहलहाय, सुख सहित भोग सबजन कराय। जब चौथो काल करै प्रवेश, तब कर्मभूम लागै अशेष // जब चौबीसो जिनराज होय, बलहर प्रतिहर चक्री सु जोय। नव नव नव द्वादश है प्रमान, सब त्रेसठ पुरुष कहे पुरान॥ केइ धरै दिगम्बर भेष भार, केइ श्रावक व्रत पालैं संभार। केइ सम्यग्द्दष्टी शुद्ध भाव, केइ पूजा दान करें उपाव॥ केइ कर्म नास केवल लहंत, भए सिद्ध निरंजन गुण अनंत। यह चोंथे काल कही सुरीत, पंचम छट्ठम दुखकी प्रतीत॥ यह विध ऐरावत क्षेत्र सार, षट्खंड सहित सोहैं सिंगार। तिस बीच पडो अतिस्वेत रंग, विजयारघ गिर सोहै उतंग॥