________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [159 SarvSareershararerararararareras प्रति वासदेव उत्कृष्ट जीव, निजनिज करनी भोगैं सदीव। जहां श्रीमुनिराज करै विहार, ऐलक क्षुल्लक श्रावक निहार॥ सम्यग्दृष्टि दो विध सुजान, भव देत चतुरविधको सुदान। जै ऐसे घोड़स देश सार, बन रहैं परम आनन्दकार // तहां रूपाचल षोड़स सुजान, एक एक गिरिपर नव कूटमान। श्री सिद्धकूट तिस बीच सार, तहां श्रीजिनमंदिरको निहार॥ जै सिंहासन तीनों रिशाल, झलकैं मोती अर रतन माल। कमलासन पर सु विराजमान, सिर तीन छत्र धारै सु जान॥ जै प्रतिमा श्रीजिनवरसुदेव,सत आठ अधिक भवि करत सेव। सब मंगल दर्व, धरै सु आद, बन रही सुरचना यह अनाद॥ सुरपति सुर खेचर सबै आय, जिनराज चरण पूजत बनाय। बहु भक्ति करेंअति प्रीत लाय, जिनगुण गावैभनवचन काय॥ नाचत थेई थेई दे दे सु ताल, बाजे बाजै बहु विध रिशाल। जै जग जयवंतो होय देव, तुम चरननको हम करत सेव॥ हमको वांछा कुछ और नाहि, तुम भक्ति रहै हम हिये मांहि। तुमगुण महिमा वरणन अपार, यह करो भक्त उरमें सुधार॥ घत्ता-दोहा-अचलमेरु पश्चिम दिशा, पूजा परम विशाल। पढत सुनत सुख पाइये, लाल भनी जयमाल॥ ___इति जयमाल। अथाशीर्वादः - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढे मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणनको कर सकै बनाय॥