________________ 124 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान SNNNNNNNNNNNNNNNNNN अथ धातुकी द्वीपमध्ये पश्चिमदिश अचलमेरु (तृ. मेरू) संबंधी षोडश जिमंदिर पूजा नं. 22 अथ स्थापना (मदअवलिप्तकपोल छन्द) दीप धातुकी पश्चिम दिशमें, अचल मेरु वंदू धर ध्यान। भद्रशाल नंदन सोमनस वन, अर पांडुकवन चार प्रमान॥ चारों दिशा चार जिनमंदिर, चारों वन षोड़स जिन थान। तिनकी आह्वानन विध करके, अपने घर पूजत सुख मान॥ ___ॐ ह्रीं धातुकी द्वीप पश्चिम दिशा अचलमेरु पर चारों दिशा चार वन संस्थित षोडश जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं, स्थापन। अथाष्टकं-त्रिभंगी छन्द क्षीरोदधि नीरं अमल अमीरं, मन वच धीरं भर लावो। कंचन भर झारी धार निकारी, तृषा निवारी सुख पावो॥ गिर अचल जो सोहै सुरनर मोहै,अति छबि जो है जिनभवनं। कर पूजा सारी अष्ट प्रकारी, शिव-सुखकारी जिन चरनं॥ ___ॐ ह्रीं धातुकी द्वीपके पश्चिमदिशा अचलमेरुके भद्रशाल वन संबन्धी पूर्वदिश॥१॥ दक्षिण॥२॥ पश्चिम // 3 // उत्तर // 4 // नंदनवन संबन्धी पूर्व // 5 // दक्षिण॥६॥ पश्चिम // 7 // उत्तर // 8 // सोमनस वन सम्बन्धी पूर्व॥९॥ दक्षिण // 10 // पश्चिम॥११॥ उत्तर॥१२॥ पांडुक वन सम्बन्धी पूर्व // 13 // दक्षिण॥१४॥ पश्चिम॥१५॥ उत्तर दिश सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ जलं॥