________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [123 SSSSSSSSSSSSSSSSSSSS जै द्रुम द्रुम द्रुम बाजै मृदंग, इन्द्रानी इन्द्र नचै सु संग। जै थेई थेई थेई धुन रहीं पूर, बन रहोसुझुरमुट जिन हजूर॥ जिनराज सभी नैनन निहार, चित्त हर्ष बढ़ोसुरपति अपार। जै जै जै जिनवर परमदेव, तुमचरणनकी हम करत सेव॥ घत्ता-दोहा षट् कुलगिरि पूजा परम, बनी सु बहुत विशाल। वांचत सुख उपजै घनो, बल बल जात सु लाल॥३१॥ इति जयमाला अथाशीर्वाद (कुसुमलता छन्द) मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वरणन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु सम्पति, बालै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जसपर भव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इति आशीर्वादः इति श्री विजयमेरुके दक्षिण उत्तर दिश षटकुलाचल पर्वतपर जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। इति धातुकी द्वीपमध्ये पूर्वदिश विजयमेरु (द्वि. मेरु) सम्बन्धी अष्टोत्तर जिन मंदिर शास्वत् विराजमान तिनकी पूजापाठ सम्पूर्णम् /