________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [121 = == = = == = = = = = विजयमेरुके भद्रशाल वन सीता तट दोनों दिश जान। पांच पांच हैं कुण्ड मनोहर तिह तट दस दस गिर परमान॥ तिस कंचनगिर पर जिनप्रतिमा एक एक सोहै जिन थान। सबमिल एक शतक नितप्रति हम जजत अर्घउरमें धर ध्यान॥ ____ॐ ह्रीं विजयमेरुके भद्रशाल बन सम्बन्धी सीता नदीके दोनों तट पांच पांच कुण्ड तिन कुण्डन तट दस दस कंचनगिरि पर एक एक जिनप्रतिमा अकीर्तम गंधकुटी सहित विराजमान तिन एक सौ प्रतिमाजीको॥७॥ अर्धं // विजयमेरुके भद्रशाल बन, सीतोदा दोनों तट जान। पांच पांच हैं कुंड मनोहर, तिह तट दस दस गिर परमान॥ तिह कंचन गिरपर जिन प्रतिमा, एकर सोहै जिन थान। सब मिल एकशतक नितप्रति हम, जजत अर्घ उरमेंधर ध्यान॥ ____ॐ ह्रीं विजयमेरुके भद्रशाल वन संबंधी सीतोदा नदीके दोनों तट पांच पांच कुंड तीन कुण्डन तट दस दस कंचनगिरि पर एक एक जिनप्रतिमा अकीर्तम गन्धकुटी सहित विराजमान तिन सौ प्रतिमाजीको॥८॥ अर्धं // विजयमेरुके पूरव कालोदधि, पश्चिम लवणोदधि मरजाद। दक्षिण उत्तर इष्वाकारे, बीच क्षेत्र वहु कहैं अबाद॥' सिद्ध भूम तहां कही अनन्ती अर जिनमंदिर साद अनाद। मन वच तन हमशीश नायकर, अघ जजत तजकै परमाद॥ ॐ ह्रीं विजयमेरुके दिशा विदिशा मध्ये लवणसमुद्र आदि कालोदधि पर्यन्त जहां जहां कीर्तम अकीर्तम जिनमंदिर होय अथवा सिद्धभूमि होय तहां तहां // 9 // अर्घ // // जवा