________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [117 === ==== = ===== == ___ घत्ता-दोहा पूजा श्री सर्वज्ञकी, जो वांचै मन लाय। नरसुरपति सुख भोगकैं, निहचै शिवपुर जांय॥ इति जयमाला। अथाशीर्वाद - कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़ें मन लाय। जाके पुन्य तनी अति महिमा, वरणन को कर सके बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु संपति, बाटै अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पद ले शिवपुर जाय॥ इत्याशीर्वादः इति श्री विजयमेरुके उत्तर ऐरावत संबंधी रुपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्। अथ विजयमेरुके उत्तर दक्षिण षट्कुलाचल पर्वत सिद्धकूट जिनमंदिर पूजा नं. 21 अथ स्थापना - अडिल्ल छन्द विजयमेरु के दक्षिण तीन सुजानिये। अरु उत्तर दिश तीन कुलाचल मानिये॥ तिनपर श्री जिनभवन विराजत सार जू। आह्वानन विध करत हरष उर धार जू॥१॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके दक्षिण उत्तर षट् कुलाचल पर्वतपर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो अत्रावतरावतर संवौषट् आह्वाननं / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं / अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं / स्थापनं /