________________ 116] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ធផលទេសផលជលផល जै जुगला धर्म चलैं सु रीत, सुखमें सब जीव करै व्यतीत। जब चौथा काल लगैंसु आय, तब कर्म झूम वरतै सुमाय॥ जहां तीर्थंकर चौवीस होय, लख दरश सचीपति मोहि होंय। चक्री बलहर प्रतिहर महान, यह त्रेसठ पुरुष पवित्र जान॥ केई मुनि व्रत धारै निकट भव्य, केई गहैं अणुव्रत लहैं द्रव्य। केई केवलज्ञान करें प्रकाश, पावै शिवपुर अविचल अवास॥ यह चौथे काल कही सुरीत, पंचम षष्ठम दुखरूप मीत। तिस क्षेत्र बीच वैताड एक, गिर शिखरकूट नव हैं प्रत्येक॥ वसु कूट आठ दिश कहै भेव तहां केल करैं बिंतरें सु देव। नवमो श्री सिद्ध सुकूट नाम,जहां स्वयं सिद्धजिनवर सुधाम॥ जै रत्नमई प्रतिमा पवित्र सत आठ अधिक छबि अति विचित्र। सब समोसरण रचना अनूप,सुरनर मिल निरखें जिन स्वरूप॥ जै प्रातिहार्य मंगल सु दर्व, जै वर्णन कवलों करै सर्व। जै सिंहासनपर कमल सार, जै जगमग जोत लसै अपार॥ जैतापर श्री जिनराजदेव, शत इन्द्र चरनकी करत सेव। पद्मासन छवि वरणी न जाय, तन उचित पांचसै धनुष काय॥ खेचर खेचरनी सबै आय, जिनराज चरन पूजन सु भाय। जै नृत्य करत संगीत सार, विद्या बल रूप अनेक धार॥ बहु विध कौतूहल करत जाय, नरजन्म सुफल अपनो कराय। जै जै जै जै जिनराज देव, भवि लाल चरनकी करत सेव॥