________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [107 NNNNNNNNNNNNNNNNNNNN वप्रकावती देश, सोहै पश्चिम विजयको। गिर वैताड विशेष, तापर जिन गृह नित जजों॥३१॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी वप्रकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ // गन्धा देश विशाल, पश्चिम दिश गिर विजयके। श्री जिन भवन विशाल, अर्घ जजों वैताड़ पर // 32 // ____ॐ ह्रीं विजय मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी गंधा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ // पश्चिम विजय वखान, देश सुगन्धा नाम है। विजयारध गिर जान, तापर जिनगृह पूजिये // 33 // ___ॐ ह्रीं विजय मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी सुगंधा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ // विजय पश्चिम दिश सोय, देश गन्धला है भलो। तहां जिनमंदिर जोय जजों सदा विजयार्धमें // 34 // ॐ ह्रीं विजय मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी गंधला देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ // गन्धमालनी देश, वसै विजय पश्चिम दिशा।। श्री जिन भवन विशेष, रुपाचल पर पूजिये॥३५॥ ॐ ह्रीं विजय मेरुके पश्चिम विदेह संबंधी गंधमालनी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ // ___अथ जयमाला - दोहा / विजय मेरुके पश्चिम दिशा रुपाचल सु विशाल। तिनपर जिनगृह पूजकैं, अब वरनूं जयमाल // 36 //