________________ श्री तेरहद्वीप पूजा विधान [55 នននននននននននននន महा वप्रा है नाम, देश सरस शोभा धरै। जहां वैताड सु ठाम, तहां जिन भवन सु पूजिये॥२१॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी महावप्रा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥११॥ अर्घ॥ वप्रकावती सार देश जहां बैताड है। तहां जिन भवन निहार, मैं पूजू मन लायकै॥२२॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी वप्रकावती देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१२॥ अर्घ॥ है गंधाता नाम, देश सरस मन मोहनो। गिरि विजयारध ठाय तापर जिनमंदिर जजो॥२३॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी गंध देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१३॥ अर्घ॥ नाम सुगन्धा तास, गिरि वैताड तहां कहो। तहां जिनभवन प्रकाश मैं पूजू मन लायके॥२४॥ ___ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी सुगंधा देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१४॥ अर्घ॥ देश गन्धला नाम, तहां वैताड़ सुहावनो। ता ऊपर जिन धाम, मैं पूजू हरषाय // 25 // ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी गंधला देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१५॥ अर्घ॥ गन्धमालनी नाम, तहां विजयारध जानिए। तापर है जिनधाम, पुजत सुरनर हरषसों॥२६॥ ॐ ह्रीं सुदर्शन मेरुके पश्चिम विदेह सम्बन्धी गंधमालनी देश संस्थित रूपाचल पर सिद्धकूट जिनमंदिरेभ्यो॥१६॥ अर्घ