________________ 78 ] श्री तेरहद्वीप पूजा विधान ជលផលជលផលផលមនននននន जै द्रुम द्रुम द्रुम बाजै मृदंग, जै झन झन झन सुर नचत संग् / जै जिनगुण गावै प्रीत लाय, बहु भक्ति हिये धारै बनार // इन्द्रानी इन्द्र नचै सु साथ, जिन रूप निरख नावै सु माथ। निज जाड़ अंजुली धरत पाय, जिनराज सबै निरखै बनाय॥ फिरफिरफिरफिरकीलेतजाय,झुकझुकझुकझुकजिनसरणआय। छमछम छमछम घुघरु बजंत, जय जय जय जय सुर करंत॥ यह विधबहु भक्ति करै सुरेश,निरजर निरजरनी मिल असेश। खेचर खेचरनी सबै जाय, यह कौतुक देखत प्रीत लाय॥ जै बल बल जातसु लाल देख,तुम ध्यान धरत हिरदे विशेष। यह अरज हमारी सुनी सार संसार समुद्र ते करो पार॥ घत्ता-दोहा विजयमेरु पूजा सुविध, सुन्दर सरस रिसाल। वांचत भवि मन लायकैं, लाल नवावत भाल॥४०॥ इति जयमाला। अथाशीर्वाद-कुसुमलता छन्द मध्यलोक जिन भवन अकीर्तम, ताको पाठ पढ़े मन लाय। जाके पुन्यतनी अति महिमा, वर्णन को कर सकै बनाय॥ ताके पुत्र पौत्र अरु सम्पति, बाढ़े अधिक सरस सुखदाय। यह भव जस परभव सुखदाई, सुरनर पदले शिवपुर जाय॥ // इति आशीर्वादः॥ इति श्री विजयमेरु सम्बन्धी षोडश जिनमंदिर पूजा सम्पूर्णम्।